मिली मौत भी किस्तों में अमूमन ज़िंदगी की तरह ग़ालिब ना तो मौत मिली मुकम्मल नाहि कमबख़्त ये ज़िंदगी। ना जाने मुकम्मल मौत मरने से पहले कितनी दफा मरना पड़े कुछ खफा-खफा सी रहती है मुझसे आजकल ये ज़िंदगी। #प्रवीणा#