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मैं चढ़ता चला गया ऊँचा और ऊँचा, पहाड़ों को नापा, गहर

मैं चढ़ता चला गया ऊँचा और ऊँचा,
पहाड़ों को नापा, गहराईयों को जाँचा,
आसमां को टटोला,
सूरज,चाँद,तारों तक पहुँचा,
दुनियाँ भर के अविष्कार किये
 ज़िंदगी सहूलियत भरी बनाई,
बहुत कुछ पाया पर...
वो बेशकीमती चीज़ खो गई
 जो जन्म से मेरी पहचान थी,
अब खुद को फिर उस मिट्टी से जोड़ने,
मन के पाँव नीचे जमीं पर  रख रहा हूँ,
अपनी पहचान ढूंढने को...
इंसानियत..... इंसान ही पैदा हुआ था ना मैं |

©Rajni Sardana
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