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वाह!क्या रहा तेरा अवतार, तूने किया कितनों का बेड़

वाह!क्या रहा तेरा अवतार, 
तूने किया कितनों का बेड़ा पार,,
चरणों में तेरे नतमस्तक हे माँ, 
विनती करो मेरी स्वीकार। ।
अदा नहीं कर पाऊँगा तेरा उपकार, 
समक्ष तेरे खोटे हैं हीरे के हार,,
लालसा मेरे हृदय की यही माँ, 
लाल बनूँ मैं तेरा हर बार। ।
चित्त में बसी तेरे ममता की धार, 
झेला तुमने न जाने कितना कुंठित भार,,
पावन रहा तेरे जीवन का सार, 
बिन तेरे दुःखित है अपना परिवार। ।।
written by संतोष वर्मा azamgarh वाले 
खुद की जुबानी। ।

©Santosh Verma
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