इतना तन्हा था मैं कि मेरा कोई ना यार था ना कोई मेरा था ना किसी को मुझसे प्यार था फिर यूं हुआ कि तुमसे मुलाकात हुई वो सर्द थी रात और दिन शनिवार था! पहले तो हो रही थी झिझक कि कैसे नजरे मिलाऊं मैं तुमसे क्या कहूं कि बात को आगे बढ़ाऊं मैं! पर तुम्हारी हंसी ने सब आसान कर दिया मुझ पागल के दिल में विश्वाश भर दिया। तुम्हारा यूं मेरी बाइक पे मुझे लिपट जाना मेरी जेब में हाथ डालना और गुदगुदाना भुला नहीं पा रहा हूं तुम्हारी बदमाशियों को मैं वो गर्म आहे और तेरा मुझमें समा जाना!! और उस मुलाकात के नाम बस इतना कहूंगा मैं अब हर गजल बस तुम पर लिखूंगा मैं क्योंकि मुद्दतों बाद आज फिर से हसीं रात हुई है मेरी इश्क से आज फिर से मुलाकात हुई है बह रहा हूं आज फिर से प्यार के दरिया में मैं चंद लम्हों में ही सदियों सी बात हुई है!! वो हंसी तुम्हारी मैं कभी भुला ना पाऊंगा तुम्हारी हर मुस्कान पे मैं अपना दिल बिछाऊंगा और शर्त बस इतनी ही है कि मेरा साथ निभाना तुम फिर देखना तुम्हारे इश्क में मैं सारी हदें भुलाऊंगा!! कवि: इंद्रेश द्विवेदी (पंकज) ©Indresh Dwivedi #tereliye