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वो शौक, वो जोश, वो किस्से पुराने, सब दब गए हैं वक्

वो शौक, वो जोश, वो किस्से पुराने,
सब दब गए हैं वक्त के तहखाने में।
अब तो जाम भी लगता है बेअसर सा,
ना वो तासीर है, ना वो दीवाने में।

मस्ती थी कभी खुद को भुलाने में,
अब ग़म छुपते हैं हंसने के बहाने में।
खुशबू थी कभी हर बहार के तराने में,
अब वो यादें भी उलझीं हैं अफसाने में।

जिंदगी के रंग अब स्याह लगने लगे,
जैसे खुशियां कहीं खो गईं इस ज़माने में।
सवाल हजारों हैं दिल के आईने में,
बस धुंधली तस्वीर सी फसाने में।

गुज़री हुई बातों की सदा आती है,
जैसे कोई पुकार हो वीराने में।
जो मिल ना सके, वो याद बहुत आते हैं,
ना जाने क्या जादू है बेगाने में।

©नवनीत ठाकुर ना क्या जादू है बेगाने में
वो शौक, वो जोश, वो किस्से पुराने,
सब दब गए हैं वक्त के तहखाने में।
अब तो जाम भी लगता है बेअसर सा,
ना वो तासीर है, ना वो दीवाने में।

मस्ती थी कभी खुद को भुलाने में,
अब ग़म छुपते हैं हंसने के बहाने में।
खुशबू थी कभी हर बहार के तराने में,
अब वो यादें भी उलझीं हैं अफसाने में।

जिंदगी के रंग अब स्याह लगने लगे,
जैसे खुशियां कहीं खो गईं इस ज़माने में।
सवाल हजारों हैं दिल के आईने में,
बस धुंधली तस्वीर सी फसाने में।

गुज़री हुई बातों की सदा आती है,
जैसे कोई पुकार हो वीराने में।
जो मिल ना सके, वो याद बहुत आते हैं,
ना जाने क्या जादू है बेगाने में।

©नवनीत ठाकुर ना क्या जादू है बेगाने में