Vote पल्लव की डायरी चेहरों की शर्म उतरने लगी है अदाएं उनकी बगावत करने लगी है कत्ल करके खैरियत पूछने चली है नचाते रहे उंगलियों पर बेड़िया कानून की पहनाते रहे है शूल दिल मे जुमलों के धसाते रहे है जब से नजर अंदाज की डाली है आदत धोंसे बीमार करने की दे डाली है रप्ता रप्ता बढ़ता जहर बदहाल जिंदगिया कर डाली है बड़ी लकीर खींचते खींचते ना जाने कब जिंदगी गुमशुम कर डाली है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" बदहाल जिंदगियां कर डाली है #voting