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आज जीवन भार इसलिए लगता है क्योंकि हम कल को डो

आज  जीवन  भार  इसलिए लगता है
क्योंकि  हम कल  को डो रहे है
जो  बीत गए है ढेरों कल.
उनका  पहाड़  भी हमारी छाती पर सवार है
और जो आये नहीं कल. उनका. पहाड़  भी
हमारी छाती पर सवार है
इन दो  पाटन  क़े बीच
आदमी  पिसता है  मर जाता है
घसीटता है  रोता है  टूटता  है  खंडित होता है
लेकिन इन दो पाटों  क़े बीच  भी एक स्थान है
मुक्ति का द्वार है ... वह हैवर्तमान का क्षण

©Parasram Arora वर्तमान.......
आज  जीवन  भार  इसलिए लगता है
क्योंकि  हम कल  को डो रहे है
जो  बीत गए है ढेरों कल.
उनका  पहाड़  भी हमारी छाती पर सवार है
और जो आये नहीं कल. उनका. पहाड़  भी
हमारी छाती पर सवार है
इन दो  पाटन  क़े बीच
आदमी  पिसता है  मर जाता है
घसीटता है  रोता है  टूटता  है  खंडित होता है
लेकिन इन दो पाटों  क़े बीच  भी एक स्थान है
मुक्ति का द्वार है ... वह हैवर्तमान का क्षण

©Parasram Arora वर्तमान.......