ये अकेलापन कोई दोज़ख का अभिशाप नहीं है ये तो ज़न्नत का वरदान है ताकि तुम उससे जुड़ सको जो अब तक तुमसे जुड़ा नहीं था ये अकेलापन तुम्हारी ही प्रतिछाया है तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब है जो तुम्हारे ही आईने से प्रकट होकर तुम्हारी ही समृद्दि की अभिवृद्धि है t अब देखलो तुम स्वयं को क़ि तुम कितने संयत अचंचल और सजग हो चुके हो और अपने ही तराज़ू . मे खुद को तोल पारहे हो जहाँ तुम दोनों पलड़ों मे यथार्थ. का वजन बराबरी पर देख पा रहे हो ©Parasram Arora #अकेलेपन का यथार्थ.......