आईने के सामने सच अपनी नाकामयाबियों को छुपा कर खुद से कहां तक - कब तक छिपोगे कभी तो आइने से नजर मिल ही जाएगी कितने कांच तोड़ोगे , कितने आइने लिपोगे मुखौटे घिस जाते है, सच्चाई चीज है ऐसी फट कर जाल हो गई है उम्मीदें तुम्हारी अब नए ख्वाब बुनो, अरे ! पुरानी यादें कितना सीलोगे पुरानी यादें को दफन करो अब नए ख्वाब जिंदा करो अरे पत्थर तो पत्थर है हीरा समझ कर कब तक घिसोगे आखिर सच कड़वी क्यों लग रही है कितने जबानो पर ताला लगाओगे कितनो के मुंह सिलोगे कितने मुंह की बात छिनोगे #Poetic_Pandey ©Poetic Pandey G #AdhureVakya