ग़ज़ल ------- अधर-रसपान करने दे अभी अंकों में भरने दे । तू अपने भाव में निशि-दिन मुझे अविराम तरने दे । नयन की झील में अपने सतत निर्बाध झरने दे । बिना अब प्रश्न-चिह्नों के पनाहों में विचरने दे । तनिक अब सब्र कर गुंजन जरा उसको सँवरने दे । - विजय गुंजन