Nojoto: Largest Storytelling Platform

अधरो पर रहती है उसके, चुप की एक लकीर । बोल नही सकत

अधरो पर रहती है उसके, चुप की एक लकीर ।
बोल नही सकता मैं कुछ भी , ऐसी है जंजीर ।।

२७/१०/२०२२    -       महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR अधरो पर रहती है उसके, चुप की एक लकीर ।
बोल नही सकता मैं कुछ भी , ऐसी है जंजीर ।।

रातें अब लगती है ऐसे , बिन मोती के सीप ।
चुप वो रहती चुप मैं रहता , रहते मगर समीप ।।
गिरकर उठता उठकर गिरता , प्यासा यहाँ फ़कीर ।
अधरो पर रहती है उसके , चुप की एक लकीर ।।
अधरो पर रहती है उसके, चुप की एक लकीर ।
बोल नही सकता मैं कुछ भी , ऐसी है जंजीर ।।

२७/१०/२०२२    -       महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR अधरो पर रहती है उसके, चुप की एक लकीर ।
बोल नही सकता मैं कुछ भी , ऐसी है जंजीर ।।

रातें अब लगती है ऐसे , बिन मोती के सीप ।
चुप वो रहती चुप मैं रहता , रहते मगर समीप ।।
गिरकर उठता उठकर गिरता , प्यासा यहाँ फ़कीर ।
अधरो पर रहती है उसके , चुप की एक लकीर ।।