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जब-जब सोचता हूँ कि वो बदल गई होगी, हर बार खुद को ह

जब-जब सोचता हूँ कि वो बदल गई होगी,
हर बार खुद को हताश पाता हूँ।
बात करने का मुझे भी शौक नहीं,
पर दिल को हमेशा वीरान पाता हूँ।
कम्बख्त इस मन को कैसे समझाऊं,
मोहब्बत से बड़ा आत्मसम्मान है।
हर बार टकराकर स्वाभिमान से,
खुद को यूं ही बेइज्जत पाता हूँ।
-मेरी कलम

©kalam_shabd_ki #HumTum
जब-जब सोचता हूँ कि वो बदल गई होगी,
हर बार खुद को हताश पाता हूँ।
बात करने का मुझे भी शौक नहीं,
पर दिल को हमेशा वीरान पाता हूँ।
कम्बख्त इस मन को कैसे समझाऊं,
मोहब्बत से बड़ा आत्मसम्मान है।
हर बार टकराकर स्वाभिमान से,
खुद को यूं ही बेइज्जत पाता हूँ।
-मेरी कलम

©kalam_shabd_ki #HumTum