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तेरी महफिलों में अब, मेरा मन नहीं लगता तेरे घर क

तेरी  महफिलों में अब, मेरा  मन नहीं लगता
तेरे घर का आंगन, अब  आंगन  नही लगता

एक अपना है मेरा जो, पीछे से गाली देता है
वो  देखने  पर   मेरा,   दुश्मन   नहीं   लगता

बेशर्मी  लेकर हाथों में, वो  खुद ही  घूमते हैं
घर पर मेरे इल्जाम है, चिलमन  नही लगता

कभी जो मुसकुराहट,रहती थीं जिस जमीं पर
आज  वो  वीरान  है,  गुलशन   नही   लगता

"इरफ़ा"  सो  गया  हमेशा  तुझसे जो रूठकर
वो कहते  है  तेरा  घर  *मदफ़न  नही  लगता

©Irfan Saeed Writer *मदफ़न - कब्र, कब्रगाह, मज़ार, मकबरा
#urdushayari
#gazal
#Shayari 
#Nojoto 
#irfansaeedWriter 
#alone 
Satyaprem Saad Ahmad ( سعد احمد ) Farhan ki duniya Mukesh Poonia
तेरी  महफिलों में अब, मेरा  मन नहीं लगता
तेरे घर का आंगन, अब  आंगन  नही लगता

एक अपना है मेरा जो, पीछे से गाली देता है
वो  देखने  पर   मेरा,   दुश्मन   नहीं   लगता

बेशर्मी  लेकर हाथों में, वो  खुद ही  घूमते हैं
घर पर मेरे इल्जाम है, चिलमन  नही लगता

कभी जो मुसकुराहट,रहती थीं जिस जमीं पर
आज  वो  वीरान  है,  गुलशन   नही   लगता

"इरफ़ा"  सो  गया  हमेशा  तुझसे जो रूठकर
वो कहते  है  तेरा  घर  *मदफ़न  नही  लगता

©Irfan Saeed Writer *मदफ़न - कब्र, कब्रगाह, मज़ार, मकबरा
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Satyaprem Saad Ahmad ( سعد احمد ) Farhan ki duniya Mukesh Poonia
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Irfan Saeed

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