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कितने खुशनसीब हो तुम जो बरस कर बयां करते अपनी खुशि

कितने खुशनसीब हो तुम
जो बरस कर बयां करते
अपनी खुशियां व दर्दो गम
तुम्हारे आँसू को सब यहां
अपनी आगोश में ले लेते
हवाओं के झोंको संग तुम
नई सफ़र पर बह निकलते
हम धारण किये इंसानी तन
हर एहसास दिल में दबाते
कठोर बनाते कोमल मन
अपने अश्कों को पी जाते
बनाये रखने को बस भ्रम।

©alka mishra
  #बादल