बोल रहा मुंडेर पर , निशिदिन मेरे काग । कहता जीवन भर मिले , तुझे सजन अनुराग ।। १ सावन से पहले सजन , आ जाना इस बार । कब तक करती मैं रहूँ , यह विरहन शृंगार ।। २ पिया यही अनुराग तो , है मेरा शृंगार । बिन तेरे झूठा लगे , मुझको यह संसार ।। ३ मिले पिता अनुराग जो , बच्चे हो सम्पन्न । घर आँगन खुशियां खिलें , देखो सभी प्रसन्न ।। ४ सावन के झूले पड़े , पूर्वा चले बयार । नैना प्यासे दीद को , आ जाओ भरतार ।। ५ आज उसी अनुराग से , भर दो मेरी माँग । खिल जाऊँ बनके कली , दूँ कोयल सी बाँग ।। ६ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR बोल रहा मुंडेर पर , निशिदिन मेरे काग । कहता जीवन भर मिले , तुझे सजन अनुराग ।। १ सावन से पहले सजन , आ जाना इस बार । कब तक करती मैं रहूँ , यह विरहन शृंगार ।। २ पिया यही अनुराग तो , है मेरा शृंगार । बिन तेरे झूठा लगे , मुझको यह संसार ।। ३