"विकासशील " राष्ट्र "विकसित " होने की दौड़ मे शामिल चुका है काश वो थोड़ा पीछे मुड़कर देख पाता उन बेहिसाब जिंदगीयों को भी जो सडक किनारे फुटपाथों पर आज भी रेंगने क़े लिए विवश हैँ.... आसमानी चादर क़े नीचे नंगे फुटपाथ पर उनकी फटी पुरानी टाटपटिया बहुत कुछ कहना चाहती है लेकिन वे फटेहाल मजदूर अपने दुख की लकीरों को मुट्ठी मे भींच कर रखना चाहता है तब तक ज़ब तक ये राष्ट्र "विकासशील " की खंदक से निकल कर "विकसित " शिखर तक नहीं पहुंच जाता..... अभी तो इन्हे खुदको फुटपाथी नींद क़े हवाले करना है ताकि कल सुबह वेफिर से पथ्हर डोने क़े लिए पर्याप्त ऊर्जा संग्रहित कर सके ©Parasram Arora विकासशील राष्ट्र........