होता प्रायः यह हैं. कि हम अपनी जिम्मेदारी नही निभाते और व्यर्थ में पलायन का मार्ग अपनाते हैं...शरण खोजने लगते हैं व्यक्तित्व के झूठे अहम और रूड़ियों की थोथी बंदिशों में. l और विवशता की लचर दलिलों में लेकिन ये एक प्रकार से अपनी कुंठा का पोषण हुआ... निराकर्ण नही ©Parasram Arora कुंठा का पोषण