Unsplash दीवारों पे आज भी निशान है गुजरे हुए लम्हों का, कुछ धुंधली सी तस्वीरें, कुछ खामोश कहकसों का। वो कागज की कश्तियां, बरसात के पानी में, वो हंसी के पल, जो छूट गए ज़िंदगानी में। स्कूल की वो गली, वो मैदान याद आता है, जहां ख्वाब बुनते थे, वो आसमान याद आता है। कभी लड़ते, कभी हंसते, और दोस्ती निभाते, आज उन चेहरों के साये भी गुमनाम नजर आते वो क्लास की खिड़की, जहां से बाहर झांकते थे, खुद के ख्वाबों में खोए, दुनिया को ताकते थे। आज भी लगता है, वो सब पल वहीं ठहर गए, और हम वक्त के साथ, न जाने कहां बिखर गए। गुजरी सड़कों पर चलना अब सपना सा लगता है, जहां हर मोड़ पर बचपन हमें अपना सा लगता है। पर वो साथी, वो ठिकाने, अब कहीं खो गए हैं, वो आवाजें, वो अफसाने, अब धुंधले हो गए हैं। चाहे जितना लौटूं, वो रास्ते नहीं मिलते, वो गलियां नहीं मिलती, वो किताबी बस्ते नहीं मिलते बस यादों का एक खजाना है, जो दिल में बसता है, और गुजरा हुआ हर पल, कहीं अंदर सिसकता है। वक्त की परछाइयों में ढूंढते हैं अपने साये, वो जगहें, वो लोग, जो कभी लौटकर ना आए। पर इस दिल के कोने में,उनका निशान बाकी है फिर से लौटेंगे हमराह ,उनका एहसास बाकी है राजीव ©samandar Speaks #camping मनीष शर्मा