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लौट आओ ना मेरी ढुढती निगाहों में इन तरसती बाहों म

लौट आओ ना

मेरी ढुढती निगाहों में
इन तरसती बाहों में

सिसकती आहों में
उन चलती हुई राहों में

लौट आओ ना

गिली बारिशों में
अधूरी ख्वाहिशों में

दोपहर की छत पर
कम से कम एक बार तो वक्त पर

तो लौट आओ ना
लौट आओ ना

©Garima Srivastava
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