महाभारत के बरबर युग से लेकर ब्रलिन के पतन तक न जाने कितने युद्ध हुए.... कई सभ्यताये जन्मी और नष्ट हुई कई राष्ट्र नए बने कई उजड़े रक्त रंजीत हुए.... सक्ताओ....के उलट फेर हुए शस्त्रों क़ी होड़ मे लाशों के मजमे लगे नर्क जीवंत हुए...अहं के कद बढ़ते चले गए ...नफ़रत के विषैले बीज़ पनपे और अंधी महत्वकक्षाओं क़ी दौड़ मे आदमी और आदमियत दर बदर हुए ज़मीन क़ी परतो मे सात सात तहे लाशों क़ी बिछती चली गई ...और आज हम आधुनिक युग मे पहुंच गए जहाँ आतंकित सांस्कृति ने जन्म लिया और बची खुची आदमियत भी नेस्त नाबूद होने के कगार पर पहुंच गई कदाचित भोर क़ी इस बेहद बहूदी सफेदी मे एक बिधवसक दानवी अपरिशकृत मानवता "आतंकवाद को जन्म देने मे सफल हुई है ©Parasram Arora आतंकवाद का जन्म