White बड़ा अजीब रोग मुफ़लिसी, रूह कँपाने वाला है दर्द हमेशा बढ़ता है , कितना तड़पाने वाला है? लोग इबादत में डूबे हैं साथ अक़ीदत ले करके, मेरे मन में वही बसा है,रोटी का जो निवाला है। बात न अच्छी कर पाता, न मशविरे के काबिल हूँ, जी-हुजूरी करता रहता फिर भी बनता जाहिल हूँ। कितनी हनक अमीरी की है जूते झट से उठते हैं, रोटी तेरी आड़ में मैं , इन सबको करता साहिल हूँ। इन सबका बस सार यही है, रात न सोने वाली है। बातें सुनो कभी मालिक की ,कभी सुनो घरवाली है। खुशियों का त्यौहार सभी का, दर्द छिपाता फिरता हूँ, कौन याद रखेगा ये,उस ग़रीब की भी दिवाली है।। ©Shubham Mishra #sad_quotes ग़रीब की दिवाली