मेरे सपने कभी , कभी तो पिता जी की उम्मीद के सामने लाचार से दीखते थे। एक पल को थम सा जाता मै आँखों को मुदकर दीवार के सहारे घंटों बीत जाते पर गलत वो भी नही थे जिंदगी देने वाले ने जिंदगी को काफी करीब से देखा था. उनकी आँखों में एक उम्मीद थी एक आस थी उन्होंने मेरे सपनों को लेके आज होसला तो दिया पर थोडा डरे हुए थे वो तकलीफ तो मुझे भी होती है पर क्या करूं उठानी तो पड़ेगी। अगर जीत गया तो ठीक वरना शायद माफ़ी के लायक भी नही रहूँगा।।। "राहुल" #kavita