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4. हो उष्म, विकार हरे तन का, पाचन प्रक्षालन पर

4. हो उष्म, विकार हरे तन का,
    पाचन प्रक्षालन परिशुद्ध करे,
    शोषित कर ताप हरे सबका,
    संगति से अपनी शुद्ध करे।

5. नहीं अपना कोई रंग धरे,
    जो झांके उसकी छवि दिखे,
    निज धवलता के मूल्य पर,
    औरों को परिष्कृत कर जाए।
 #क्षणिकाएँ #जल#
4. हो उष्म, विकार हरे तन का,
    पाचन प्रक्षालन परिशुद्ध करे,
    शोषित कर ताप हरे सबका,
    संगति से अपनी शुद्ध करे।

5. नहीं अपना कोई रंग धरे,
    जो झांके उसकी छवि दिखे,
    निज धवलता के मूल्य पर,
    औरों को परिष्कृत कर जाए।
 #क्षणिकाएँ #जल#