शीर्षक- अधखिली यह कली ------------------------------------------------------- अधखिली यह कली , जो खिलती कभी । तोड़ डाला इसे , जालिमों ने अभी ।। यह तो मिटने चली , जो महकती कभी । अधखिली यह कली -------------------------।। यह डोली यहाँ जिसकी , सजने लगी है । यह शहनाई यहाँ जो , बजने लगी है ।। अभी तो है बचपन, उम्र खेलने की । बन गई है दुल्हन ,मेहंदी इसके लगी है ।। दे रहे हैं विदाई , इसको सभी । मिट गए इसके अरमां , आज सभी ।। अधखिली यह कली -------------------------।। यह किसको सुनाये , कहानी अपनी । बैठी रहती है खामोश , गुमशुम बनी ।। इसके सपनों से मतलब , किसी को नहीं । यह तो व्यापार की एक ,वस्तु बनी ।। लगी है नजर इसके , हुस्न पर । कर रहे हैं इसी का , सौदा सभी ।। अधखिली यह कली --------------------------।। नहीं इसका नसीब , हक जताये अपना । आसमां को उड़े , तोड़ पहरा अपना ।। इसके दुश्मन नहीं और , अपने ही है । अब बताये किसे यह , दर्द अपना ।। यह बनकर शमां , करती रोशनी । मगर इसको तो , बुझा दिया अभी ।। अधखिली यह कली ------------------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #गीतकार