धन निरंकार जी एक पल में देखो क्या से क्या हो गया । इन्सान घरों में केद ,पंछी आसमान में आजाद हो गया ।। इन्सान ने पंछी को पिंजरें में कैद कर रखा था । आज हमने इन्सान को घरों में कैद होते देखा है ।। इन्सान अपनी गलतियाँ दूसरो के माथे मड रहा है। जो इन्सान खुद को कर्ता धर्ता समझ रहा था आज वही इन्सान घरों मे भगवान भरोसे बेठा है ।। जो इन्सान अपने इल्मो हुनर पर इतराते थे । बहुत कर ली तरक्की हमने फरमाते थे आज घरों में कैद हुए बेठे है लाचार मजबुर हुए बेठे है ।। इन्सान न तो पहले सुधारा था । न अब सुधर रहा है जिसे देखो परेशान कर रहा है ।। अभी तो थोड़ा सा झझोडा रब ने । तभी तो इतना कूछ हो रहा है जग मे ।। poetry jyoti khandelwal. Sirohi धन निरंकार जी jyoti khandelwal