इस दीर्घ रचना के पिछले भाग अर्थात् ग्यारहवें भाग में आपने देखा कि युद्ध के अंत में भीम द्वारा जंघा तोड़ दिए जाने के बाद दुर्योधन मरणासन्न अवस्था में हिंसक जानवरों के बीच पड़ा हुआ था। आगे देखिए जंगली शिकारी पशु बड़े धैर्य के साथ दुर्योधन की मृत्यु का इन्तेजार कर रहे थे और उनके बीच फंसे हुए दुर्योधन को मृत्यु की आहट को देखते रहने के अलावा कोई चारा नहीं था। परंतु होनी को तो कुछ और हीं मंजूर थी । उसी समय हाथों में पांच कटे हुए नर कपाल लिए अश्वत्थामा का आगमन हुआ और दुर्योधन की मृत्यु का इन्तेजार कर रहे वन पशुओं की ईक्छाएँ धरी की धरी रह गई। आइये देखते हैं अश्वत्थामा ने दुर्योधन को पाँच कटे हुए नर कंकाल समर्पित करते हुए क्या कहा? प्रस्तुत है दीर्घ कविता "दुर्योधन कब मिट पाया " का बारहवां भाग।
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