बचपन में बड़े होने की जल्दी, जवानी में बुढ़ापे की चिंता, बुढ़ापे में फिर से जीने की ख़्वाहिश, उम्र के हर दौर में वहाँ से भागने की फ़ितरत। दोष तेरा नहीं है ऐ जिंदगी, मैंने तुझे वहाँ ढूंढा ही नहीं, जहाँ तू खड़ी थी... जहाँ तू खड़ी थी...