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मैं चला पथ पर निरंतर मौन होकर रात-दिन और भी राही

मैं चला पथ पर निरंतर
मौन होकर
रात-दिन 
और भी राही मिले पर
सबकी मंज़िल थी अलग
कुछ हुये सँग
क्षणिक को पर
साधकर निज स्वार्थ
मुझसे 
काटकर कन्नी गये
इसका नहीं दुःख 
मैं तो अब भी चल रहा हूँ
गल रहा हिमगिरि सदृश
गलना नियति है
और चलना भी ज़रूरी
एक दिन होकर रहेगी
साध पूरी

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #नियति