मैंने सोचा फ़िर से क़लाम कर लूं क्या यू भी मुमकिन खुद ही जीना हराम कर लूं क्या मैं अब इंतेज़ार में ग़ुम हु कभी आओ तो खुद ब खुद आना मुझ को हासिल है कमाल का सबर बेबाक़ कोई शायद के कोई काश नहीं मैं ग़र मुक़म्मल क़रीब न रह सकू तो फ़िर ज़रा भी पास नहीं... ©ashita pandey बेबाक़ #international_Justice_day hindi poetry on life poetry on love urdu poetry