ऊबी हुआ जिंदगी को हुनर नया चाहिय्ये खेल नया चाहिए ठहरी हुई नदी को प्रवाह नया चाहिए मोड़ नया चाहिए ये जीवन का मरुस्थल तृषित है युगो से इसकी व्यथा को इन सिरफिरे बादलो को समझ लेनी चाहिए मील का पथ्हर तो अब भी है पर उन पर इबारत मिट चकी है गाँव मेरा कितनी दूर क्यों न हर पथर को जान लेना चाहिए जीवन. कितना लघु और समय भी कितना कम है अब तो शेष जीवन को प्रभु स्मरण मे लगा देना चाहिए #ऊबी हुई जिंदगी.....