#अन कहे लम्हे# आज मैं आसमान में घर का रुख करते परिंदो को देख कर बचपन के यादों को खग़ालते हुए उन लम्हों को जीने की आस में कुछ ठहर कर बादलों को देखने लगा, लेकिन आज वो खुशी नहीं मिल रही ना वो उत्सुकता है मन में.. मन अब ये जाने की कोशिश नही कर रहा की ये झुंड में कहां जा रहे है इतना कौतूहल करते हुए सायद अपने परिवार के पास अपने आशियाने में, मैं और मेरा छोटा सा दिमाक मेरी कल्पनाओं के समुंदर में यू तैरने लगा की मानो की मैं अनंत सागर में हूं ..। इन परिंदों का किस पेड़ की डाली पर आशियांना होगा कौन सा पेड़ इनका घर होगा , इस पर होगा.. नहीं- नही उस पर होगा मेरी खुद से ही खुद में बहस छिड़ जाती थी , अब जब पीछे मुड़ कर उन लम्हों को सोचता हूं तो आनन्द की अनुभूति होती है । और जब मैं उन यादों को आज से जोड़ कर देखता हूं तो हसी आ जाती है , जाहिर सी बात है अब हम बड़े हो चुके है..। हर दृश्य में एक तर्क के साथ उसका मतलब ढूंढने लगे है और उसका संबंध जोड़ने में लग जाते है सही गलत के अन्तर के तराजू में तौलने लगते हैं। अब जिंदगी में ठहराव नही, अब खुशियों को ढूंढा जाता है, मिल भी जाए वो हर चीज मन को ,लेकिन फिर भी ...अब वो कहां खाली मन के दरारो को भर पाती है .... (जारी है) ©akash pal #Butterfly