चाँदनी रात हो, एक नदी पास हो , और तुम साथ में हो तो क्या बात हो ! आसमाँ चाँदनी, वो नदी चाँदनी, और तुम चाँदनी हो तो क्या बात हो ! चाँदनी का गमन, बालों से लौट कर, देह से ज्यों लगे चाँदनी लौट कर, तुम लगो चंद्रमा सी तो क्या बात हो ! बालियों से प्रकीर्णित हुई चाँदनी, तुम्हारी शोखी तुम्हारा हर एक कृत्य भी, शशि-कला जो दिखाए तो क्या बात हो ! चाँदनी रात हो, एक नदी पास हो , और तुम साथ में हो तो क्या बात हो ! पूर्णिमा की अनघ चाँदनी सा बदन, ज्यों किताबों में बनता है शब्दों से तन, तुम्हारी पायल का रुन-झुन सा स्वर सुरमयी, शोर हो बारिशों का यथा मधुमयी, चाँदनी रात में गाँव से दौड़ कर, फिर नदी पर तुम आओ तो क्या बात हो ! चाँदनी रात हो, एक नदी पास हो , और तुम साथ में हो तो क्या बात हो ! #और_तुम_साथ_में_हो_तो_क्या_बात_हो