फ़टी चादर में छुपा वो सिकुड़ता पैर सिमटता रहता है पतली हड्डी बिन मास का शरीर उसका ठंड में ठिठुरता रहता है नींद पल में उचक जाती है शायद रात भर नींद उसे नही आती है जब टूटी छत से पानी टपकता रहता है जब सोते है सब चैन से वो चु रहे छत के पानी को बर्तन में ढोता है अक़सर ऐसे ही गुजरती है उसकी रात सब सोते है बिस्तर पर वो खड़े खड़े झपकियों में होता है ✍️रिंकी फ़टी चादर में छुपा वो सिकुड़ता पैर सिमटता रहता है पतली हड्डी बिन मास का शरीर उसका ठंड में ठिठुरता रहता है नींद पल में उचक जाती है शायद रात भर