देखा है मांझी को दरिया में नाव खेते हुए, पार लगाए हैं उसने जाने अंजाने , भूले भटकों को,झेले है कई मौसम,अनेकों तूफ़ान,बो भी रोज अपनी जान की परवाह किए बिना,क्यों कि बो मांझी है। एक तू भी मांझी था मेरे जीवन का,और तूने मेरी नाव को साहिल नहीं दिया। मांझी