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#OpenPoetry तेरा शहर गुजर रहे थे जब तेरे शहर से

#OpenPoetry  
तेरा शहर

गुजर रहे थे जब तेरे शहर से ,
काम लेना तो था मुझे सब्र से ।
मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर जब आ के रुकी ,
आंखे पागलों की तरह तूझे ढूंढने लगी ।

और फिर जब ट्रेन स्टेशन छोड़ के जाने लगी ,
ऐसा लगा कि तू मुझे छोड़ के जा रही है..
और बड़ी जोर से तेरी याद आने लगी ।
बाहर आने को आतुर थी , दिल की धड़कन ,धड़क धड़क कर ।
मगर बेचारी रह गई , सीने के अंदर तड़प तड़प कर ।

सांसे चल रही थी ऐसी , जैसे कि कह रही हो - 
कि ट्रेन से उतर जाओ गौरव , वो यहीं कहीं तो होगी ।
जैसे ही मै हाथ बढ़ाऊंगा , तुम मेरे साथ चल दोगी ।
हाल रूह का ऐसा था - जैसे इलाज से मिलने आया रोगी ।

तभी गले लग कर रोते देखा , मैंने एक जोड़े को प्लेटफार्म पर ।
हाथ छुड़ा कर जाते देखा ,लड़की को मैंने प्लेटफॉर्म पर ।
फिर हां ना की खींच तान में , ट्रेन काफी आगे निकल गई ।
मगर तू तो इस शहर में नहीं, कैसे ये बात मेरे जहन से निकल गई ।

चलो , अच्छा ही हुआ ,जो उतरे नहीं थे हम ट्रेन से ।
कैसे कैसे खुद को सम्हाला था , तुम्हारे जाने के बाद , 
फिर हो जाते हम पहले से - बेचैन से ।

फिर वादा खुद से कर आए हम ,गुजरते हुए तेरे शहर से ।
कि जोड़ेंगे खुद से ,याद किसी और की, क्योंकि जहर को काटते हैं जहर से ।। #OpenPoetry तेरा शहर 
गुजर रहे थे जब तेरे शहर से
काम लेना तो था मुझे सब्र से

मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर जब आ के रुकी
आंखे पागलों की तरह तूझे ढूंढने लगी

और फिर जब ट्रेन स्टेशन छोड़ के जाने लगी
#OpenPoetry  
तेरा शहर

गुजर रहे थे जब तेरे शहर से ,
काम लेना तो था मुझे सब्र से ।
मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर जब आ के रुकी ,
आंखे पागलों की तरह तूझे ढूंढने लगी ।

और फिर जब ट्रेन स्टेशन छोड़ के जाने लगी ,
ऐसा लगा कि तू मुझे छोड़ के जा रही है..
और बड़ी जोर से तेरी याद आने लगी ।
बाहर आने को आतुर थी , दिल की धड़कन ,धड़क धड़क कर ।
मगर बेचारी रह गई , सीने के अंदर तड़प तड़प कर ।

सांसे चल रही थी ऐसी , जैसे कि कह रही हो - 
कि ट्रेन से उतर जाओ गौरव , वो यहीं कहीं तो होगी ।
जैसे ही मै हाथ बढ़ाऊंगा , तुम मेरे साथ चल दोगी ।
हाल रूह का ऐसा था - जैसे इलाज से मिलने आया रोगी ।

तभी गले लग कर रोते देखा , मैंने एक जोड़े को प्लेटफार्म पर ।
हाथ छुड़ा कर जाते देखा ,लड़की को मैंने प्लेटफॉर्म पर ।
फिर हां ना की खींच तान में , ट्रेन काफी आगे निकल गई ।
मगर तू तो इस शहर में नहीं, कैसे ये बात मेरे जहन से निकल गई ।

चलो , अच्छा ही हुआ ,जो उतरे नहीं थे हम ट्रेन से ।
कैसे कैसे खुद को सम्हाला था , तुम्हारे जाने के बाद , 
फिर हो जाते हम पहले से - बेचैन से ।

फिर वादा खुद से कर आए हम ,गुजरते हुए तेरे शहर से ।
कि जोड़ेंगे खुद से ,याद किसी और की, क्योंकि जहर को काटते हैं जहर से ।। #OpenPoetry तेरा शहर 
गुजर रहे थे जब तेरे शहर से
काम लेना तो था मुझे सब्र से

मगर ट्रेन प्लेटफार्म पर जब आ के रुकी
आंखे पागलों की तरह तूझे ढूंढने लगी

और फिर जब ट्रेन स्टेशन छोड़ के जाने लगी