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मैं समुन्द्र नहीं जो समा लूँ हर शय, हर गर्द को अप

मैं समुन्द्र नहीं
जो समा लूँ  हर शय, हर गर्द
को अपने भीतर,
मैं.....मैं तो रवानी भरी लहर हूँ,
जो मचलती भी है
और उफनती भी है
 भीतर तूफ़ान आने पर,
सुनो,
शांत का अर्थ खामोशी नहीं
सब्र भी होता है,
और जब सब्र का बाँध टूटता है तो
उसके बहाव में सब बह जाता है

©Rajni Sardana
  #मैं  #लहर_सी