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व्यथाएं भी व्यथित हो उठती हैं, कभी कभी दर्द भी रो

व्यथाएं भी व्यथित हो उठती हैं, कभी कभी दर्द भी रो पड़ता है,
खो सी जाती हैं यादें भी यादों में,
सांसें समाहित हो जाती हैं, आहों में,
भयातुर,भय भी हो जाता है भयभीत,
अंधेरा भी खो जाता है स्याह रात में,
नींद को भी आ जाती है चिरनिद्रा एक दिन,
स्थिर चित्त भी आवेश में आ जाता है,फिर स्वम ढूंढ़ता है स्थिरता,
अंकुरित पादप भी पुनः लालायित हो उठता है बीज में समाहित होने,
धरा अपने में समाहित करने हो जाती है आतुर,
स्थूल भी नवनीत सा घुल कर मूल हो जाता है,
बिखरती जाती हैं सांसें,जितना भी समेटो,
नदियां उफान मार कर सागर सा,हो जाती हैं विलुप्त,
आत्मा भी बिलीन हो जाती है,परमात्मा में,
फिर शुरू हो जाता है जीवन मरन का खेल,
फिर जन्म ,फिर मृत्यु,अनवरत,सा चलने बाला दृश्य,
फिर वही दिन,वहीं रात,
वहीं भागम भाग,,शाश्वत सत्य,
जीना इक वहम लेकर, कि मिलते हैं कहीं जमीं आसमां,क्षितिज पर,,,, क्षितिज,
व्यथाएं भी व्यथित हो उठती हैं, कभी कभी दर्द भी रो पड़ता है,
खो सी जाती हैं यादें भी यादों में,
सांसें समाहित हो जाती हैं, आहों में,
भयातुर,भय भी हो जाता है भयभीत,
अंधेरा भी खो जाता है स्याह रात में,
नींद को भी आ जाती है चिरनिद्रा एक दिन,
स्थिर चित्त भी आवेश में आ जाता है,फिर स्वम ढूंढ़ता है स्थिरता,
अंकुरित पादप भी पुनः लालायित हो उठता है बीज में समाहित होने,
धरा अपने में समाहित करने हो जाती है आतुर,
स्थूल भी नवनीत सा घुल कर मूल हो जाता है,
बिखरती जाती हैं सांसें,जितना भी समेटो,
नदियां उफान मार कर सागर सा,हो जाती हैं विलुप्त,
आत्मा भी बिलीन हो जाती है,परमात्मा में,
फिर शुरू हो जाता है जीवन मरन का खेल,
फिर जन्म ,फिर मृत्यु,अनवरत,सा चलने बाला दृश्य,
फिर वही दिन,वहीं रात,
वहीं भागम भाग,,शाश्वत सत्य,
जीना इक वहम लेकर, कि मिलते हैं कहीं जमीं आसमां,क्षितिज पर,,,, क्षितिज,
rajeshrajak4763

Rajesh rajak

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