आकर मिली थी दो राहें एक चौराहे पर मैं खोया सा था और तुम थी दोराहे पर थी ज़रूरत शायद एक दूसरे के साथ की थाम कर चल पढ़ें उस हाथ की एक दूजे को बाहों का सहारा दे कर डगमगाती कश्ती को किनारा दे कर बढ़ चले कदमताल में भर के मस्ती अपनी चाल में कुछ अनसुलझे सवालों का जवाब मिला उसके आँखों से बावस्ता ख़्वाब मिला (पूरी कविता पढ़ें कैप्शन में...) आकर मिली थी दो राहें एक चौराहे पर मैं खोया सा था और तुम थी दोराहे पर थी ज़रूरत शायद एक दूसरे के साथ की थाम कर चल पढ़ें उस हाथ की एक दूजे को बाहों का सहारा दे कर डगमगाती कश्ती को किनारा दे कर बढ़ चले कदमताल में भर के मस्ती अपनी चाल में