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White पल्लव की डायरी बहती गंगा अगर विकास की कुछ छी

White पल्लव की डायरी
बहती गंगा अगर विकास की
कुछ छीटे और लहर हम तक भी आती
गारंटियों में कुछ सुगबुगाहट होती
तो राहत बजट में आती
परमात्मा की अगर प्ररेणा तुझ में होती
तो बुलजोडरो से मानवता शर्मशार ना होती
करुणा दया संवेदना अगर झकझोरती तो
हिंसक प्रयोजन की पराकाष्ठा ना होती
हक युवाओ और गरीबो के ना मरते
जुमलो और कड़वी दवाओं के
रिएक्शन जनता में ना होते
                                     प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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