लबों ने उसके रुख़्सार से जब की मुलाक़ात। आशिक़ी में बुलंद हुए कुछ और दरजात।। उलझ कर गेसुओं में फिर से नहीं सुलझना मुझे, क़ैद करलूं थाम कर, गुज़रते ये लम्हात। सर-सराहट हाथो की अब बदन में चढने लगी, लगा ज़ुतमात में पी लिया, मैंने आब-ए-हयात। आँखों में डाले आँख और हाथों में डाले हाथ, सदा यूं ही गुनगुनाते रहें, मोहब्बत के नग़मात। रखा सीने पे सर उसके, तो एहसास तब हुआ, बदल रहे हैं होले होले, मेरे ये जज़्बात। सौग़ात लेकर आई है वस्ल की ये रात, इक-दूजे के पहलू में, यूंही गुज़रें दिन-रात। 05 रुख़्सार= गाल गेसु= सर के दोनो तरफ़ के घने बाल ज़ुलमात= वो अंधेरी जगह जहां आब-ए-हयात मिलता है नग़मात= गीत सौग़ात= तोहफ़ा #beautifu #lovel #emotions #romance #erotic #urdupoetry #vaseemakhthar #ownthought