लालच की आग जंगल तक फैली हरी घास झुलस कर हुई मटमैली उन्मादी शहर .. जंगल पर झपटा चिंगारी ने फूस .. कसकर लपटा झुलसते हुए वृक्ष चीख़े चिल्लाए उन्हें राक्षस से भला कौन बचाए लकड़ी धूधू जलकर राख हो गई मशाल सुलगती हर शाख हो गई चिड़िया घोंसला भी न बचा पाई जैसे तैसे उड़ अपनी जान बचाई अण्डे घोंसलों में ही पड़े रह गए कई प्रश्न जीवन के खड़े रह गए फिर भी पिपासा कम न हो पाई मनुष्य ने खेतों पर आँख जमाई वैसे कहने को दौलत जुटा रहा है अपनी चिता ख़ुद ही सजा रहा है #worldforestday