जब लिकडे थे घरां तै, तो सोचरे थे कि क्युकर पहुंचांगे, पर सफर का बेरा ई ना पाटया, अक कितनी दूर था, कसम तेै यारों, घणा कसुता आगरे का टूर था। आलोक भाई की शायरी नै, आग लगा राक्खी थी, विशाल भाई नेै शायरी मेै, किसी की तस्वीर बणा राक्खी थी, सुमन जी नेै तो हंस हंस केै, बरसात करा राक्खी थी, अर पूजा जी के चेहरे पै, कति चांद बरगा नूर था, कसम तेै यारों, घणा कसुता आगरे का टूर था। अभिषेक भी कदे कदे शांत, तो कदे कदे अलबाद करेै था, रवि की आवाज तो कोनी आरी थी,पर कुछ कहण की कोशिश जरुर करेै था, अर प्रदीप भाई की आवाज सुणकै, मन कोनी भरै था, ओमबीर काजल तो बस, आपणी मस्ती मै चूर था, कसम तेै यारों, घणा कसुता आगरे का टूर था। अजय भी चुपचाप लेग्या नजारे, सुमन गैल आरया था, सारी उम्र याद रहेैगा, जो ट्रेन मै मौसमी का जूस बणारया था, कसुती आवाज काडै था, बैरी बिल्कुल ना शरमारया था, वापस आण का मन ना था मेरा, वक्त के हाथां मजबूर था, कसम तेै यारों, घणा कसुता आगरे का टूर था। ✍Ombir Kajal✍ ©Ombir Kajal आगरे का टूर