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खेतों में शान से करता काम पसीने पर ना देता ध्यान

खेतों में
शान से करता काम 
पसीने पर ना देता ध्यान 
वो है किसान
गांव से शहर गए 
सोच अपनी बदल गए
हर चीज मिलती है पैसे से 
जमीन अपनी बंजर छोड़ गए 
मैं भी ना कमाऊं खेतों में 
फिर कैसे मिलेगी हर चीज पैसे में 
कड़ी मेहनत और अनेको कठिनाइयों के बाद 
यूं पहुंचता खेतों से घर तक अनाज
अरे वही धूप और कठिनाइयों
सहन नही कर पाते हम 
तभी तो खुद अनाज नहीं उगाते हम
जो उगाता है 
 वो है किसान #poem खेतों में
शान से करता काम 
पसीने पर ना देता ध्यान 
वो है किसान
गांव से शहर गए 
सोच अपनी बदल गए
हर चीज मिलती है पैसे से 
जमीन अपनी बंजर छोड़ गए
खेतों में
शान से करता काम 
पसीने पर ना देता ध्यान 
वो है किसान
गांव से शहर गए 
सोच अपनी बदल गए
हर चीज मिलती है पैसे से 
जमीन अपनी बंजर छोड़ गए 
मैं भी ना कमाऊं खेतों में 
फिर कैसे मिलेगी हर चीज पैसे में 
कड़ी मेहनत और अनेको कठिनाइयों के बाद 
यूं पहुंचता खेतों से घर तक अनाज
अरे वही धूप और कठिनाइयों
सहन नही कर पाते हम 
तभी तो खुद अनाज नहीं उगाते हम
जो उगाता है 
 वो है किसान #poem खेतों में
शान से करता काम 
पसीने पर ना देता ध्यान 
वो है किसान
गांव से शहर गए 
सोच अपनी बदल गए
हर चीज मिलती है पैसे से 
जमीन अपनी बंजर छोड़ गए