खेतों में शान से करता काम पसीने पर ना देता ध्यान वो है किसान गांव से शहर गए सोच अपनी बदल गए हर चीज मिलती है पैसे से जमीन अपनी बंजर छोड़ गए मैं भी ना कमाऊं खेतों में फिर कैसे मिलेगी हर चीज पैसे में कड़ी मेहनत और अनेको कठिनाइयों के बाद यूं पहुंचता खेतों से घर तक अनाज अरे वही धूप और कठिनाइयों सहन नही कर पाते हम तभी तो खुद अनाज नहीं उगाते हम जो उगाता है वो है किसान #poem खेतों में शान से करता काम पसीने पर ना देता ध्यान वो है किसान गांव से शहर गए सोच अपनी बदल गए हर चीज मिलती है पैसे से जमीन अपनी बंजर छोड़ गए