White पल्लव की डायरी दीवारों की छतों में छटपटाने लगे थे कर्तव्यों के बोध तले दबकर अहसास अपने मिटाने लगे थे सुध बुध कहाँ थी हमको अपनी जिम्मेदारी निभाना मुश्किल ही नही बोझ सबका लिये घबराने लगे थे हर पल बेहतर हो जाये बर्षो बर्षो हम गवाने लगे थे सैर सपाटा कर मन मस्ती से झूमे चाहकर भी हम कुछ कर नही पा रहे थे शिकायते करना हमारे जहन में ना था भविष्य सबका सँवारते सँवारते हम तुम दिन जीवन के घटा रहे थे खुशी सबको देते देते अपनी उम्रो पर दाँव लगा रहे थे प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #love_shayari खुशी सबको देते,अपने उम्रो के पड़ाव गवा रहे थे #nojotohindi