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बून्द बून्द बारिश का , सिहरे मोरा अंग रोम रोम...

बून्द बून्द बारिश का , 
सिहरे मोरा अंग रोम रोम...
 गर तुम
होती संग मेरे
मैं भी 
भीग भीग कर 
संग तेरे
तृष्णा बनता धीरे-धीरे....

समीप आती 
देती यदि 
मुझे अपनी 
भीगी भीगी अंगड़ाई
तुम कामुक प्रेमक 
अपने होठ पर 
नीची करती
मेरे प्यासे 
होठ की डाली........
धीरे धीरे रे मन 
धीरे धीरे सब 
भीगें भीगे तन...
कली मुस्काये  
फूल करे सृंगार, 
ॠतु आये मेघ गाये बहार ....
सताए मन कैसे समझाये ...
पड़े बून्द बून्द 
कंचन मन पगलाए ,...

तुम हुए धीरे-धीरे   
  हमसे दूर दूर  
नदियां सारे सूखे सूखे
 प्रेम रस को तड़पे तड़से....

अब क्या क्या बताये हम...

लोकडाउन के चक्कर बक्कर में
बाहर कि 
चाट वाट और 
पानी पूरी खाये वाये
हमारे कितने ज़माने बीते बीते...☹️

🤔#निशीथ🤔

©Nisheeth pandey एक प्रेम विरह
-----------

बून्द बून्द बारिश का , 
सिहरे मोरा अंग रोम रोम...
 गर तुम
होती संग मेरे
मैं भी
बून्द बून्द बारिश का , 
सिहरे मोरा अंग रोम रोम...
 गर तुम
होती संग मेरे
मैं भी 
भीग भीग कर 
संग तेरे
तृष्णा बनता धीरे-धीरे....

समीप आती 
देती यदि 
मुझे अपनी 
भीगी भीगी अंगड़ाई
तुम कामुक प्रेमक 
अपने होठ पर 
नीची करती
मेरे प्यासे 
होठ की डाली........
धीरे धीरे रे मन 
धीरे धीरे सब 
भीगें भीगे तन...
कली मुस्काये  
फूल करे सृंगार, 
ॠतु आये मेघ गाये बहार ....
सताए मन कैसे समझाये ...
पड़े बून्द बून्द 
कंचन मन पगलाए ,...

तुम हुए धीरे-धीरे   
  हमसे दूर दूर  
नदियां सारे सूखे सूखे
 प्रेम रस को तड़पे तड़से....

अब क्या क्या बताये हम...

लोकडाउन के चक्कर बक्कर में
बाहर कि 
चाट वाट और 
पानी पूरी खाये वाये
हमारे कितने ज़माने बीते बीते...☹️

🤔#निशीथ🤔

©Nisheeth pandey एक प्रेम विरह
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बून्द बून्द बारिश का , 
सिहरे मोरा अंग रोम रोम...
 गर तुम
होती संग मेरे
मैं भी