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White वक़्त नहीं था वो, वो तो खुशियों का खज़ाना था,

White  वक़्त नहीं था वो, वो तो खुशियों का खज़ाना था,
अल्हड़  सी  उम्र  थी, और लड़कपन दीवाना था,

बहुत मीठा लगता था, वो कच्चे आम का खट्टापन,
आम के बोर सी उम्र थी, जिसे वृक्ष से झड़ जाना था,

फिरते थे  गलियों में, दिन  भर  कुलांचे  भरते हुए,
दिन भर की थकन मिटाने, सांझ ढले घर जाना था, 

ना सर पे कोई बोझ था ,ना  थी  कंधो पे जिम्मेदारी,
डोर से बंधी हुई पतंग थे, जिसे आसमाँ छू जाना था,

मिल   गई    थी  उस  उम्र में, जिंदगी की हर ख़ुशी,
मिल जाता था बिन मांगे,वो तो कुछ और ही ज़माना था,
बचकानी  सी  हरकते  भी, समझदारी से कर गया,
अल्हड़    सी   उम्र   का, वो लड़कपन दीवाना था।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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