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हमनें भाँपा है सन्नाटा खींच लेता है रगों से खून कु

हमनें भाँपा है सन्नाटा खींच लेता है रगों से खून कुन्द हो जाती है सोच की धार लटक जाती है भुजाएँ बेहोश होकर अनायास निकलने लगते हैं अस्फुट शब्द।

सन्नाटा एक रोज़ का हो तो इसे शुगल का नाम दिया जा सकता है या फिर नींद के नाम किया जा सकता है जब घुल जाता है पोर-पोर में पारे की मानिन्द सन्नाटा। तो चुस जाता है व्यक्तित्व और लाले पड़ जाते हैं अस्तित्व के।

©विवेक तिवारी
  #सन्नाटा_अंधेरों_का