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ज़हरा के चमन में जो फूल खिले थे।

ज़हरा    के    चमन    में   जो   फूल   खिले   थे।
करबला  की   ख़ाक   में  आज  बिखरे  पड़े   थे।।

कैसा   समाँ,   कैसा    ज़ुल्म-ओ-सितम    होगा।
सिसकियाँ   लेते  बच्चों   में  जब  तीर  गढ़े   थे।।

सर  पे  सजाए   सेहरा,  चेहरे  पे  लिए  मुस्कान।
शहादत  के  लिए  क़ासिम,  दूल्हे   से  सजे   थे।।

करते  थे   प्यार   से   हुसैन   नाना   की  सवारी।
उनसे   गले   लगने   को  आज  तैयार   खड़े  थे।।

पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार।
शहादत   को   हुसैन   मर्तबा  दिलवाने  चले   थे।।

जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर।
उनके ही सर-ए-अक़दस आज  नेज़ों  पे  चढ़े   थे।।

क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना  मनाऊं  सोग अख़्तर।
तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا  کے  چمن  میں   جو   پھول  کھلے  تھے
کربلا  کی  خاک  میں  آج  بکھرے  پڑے  تھے
کیسا    سماں،   کیسا    ظلم   و   ستم   ہوگا
سسکیاں لیتے بچوں میں  جب تیر گھڑے تھے
سر  پہ  سجائے سہرا،  چہرے  پہ  لیے مسکان
شہادت  کے لیۓ قاسم،  دولہے  سے  سجے تھے
کرتے  تھے  پیار سے  حُسین   نانا  کی  سواری
اُنسے   گلے     لگنے    آج    تیار   کھڑے   تھے
ज़हरा    के    चमन    में   जो   फूल   खिले   थे।
करबला  की   ख़ाक   में  आज  बिखरे  पड़े   थे।।

कैसा   समाँ,   कैसा    ज़ुल्म-ओ-सितम    होगा।
सिसकियाँ   लेते  बच्चों   में  जब  तीर  गढ़े   थे।।

सर  पे  सजाए   सेहरा,  चेहरे  पे  लिए  मुस्कान।
शहादत  के  लिए  क़ासिम,  दूल्हे   से  सजे   थे।।

करते  थे   प्यार   से   हुसैन   नाना   की  सवारी।
उनसे   गले   लगने   को  आज  तैयार   खड़े  थे।।

पहने नाना की पगड़ी, बाबा की थामे ज़ुलफ़िक़ार।
शहादत   को   हुसैन   मर्तबा  दिलवाने  चले   थे।।

जिन की अदब में सर-ए-ख़म उठने से था क़ासिर।
उनके ही सर-ए-अक़दस आज  नेज़ों  पे  चढ़े   थे।।

क्यूं ना बहाऊं आँसू, क्यूं ना  मनाऊं  सोग अख़्तर।
तुझ को पहुंचाने दीन-ए-हक़, अहल-ए-बैत कटे थे।। زہرا  کے  چمن  میں   جو   پھول  کھلے  تھے
کربلا  کی  خاک  میں  آج  بکھرے  پڑے  تھے
کیسا    سماں،   کیسا    ظلم   و   ستم   ہوگا
سسکیاں لیتے بچوں میں  جب تیر گھڑے تھے
سر  پہ  سجائے سہرا،  چہرے  پہ  لیے مسکان
شہادت  کے لیۓ قاسم،  دولہے  سے  سجے تھے
کرتے  تھے  پیار سے  حُسین   نانا  کی  سواری
اُنسے   گلے     لگنے    آج    تیار   کھڑے   تھے