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इतवार था,अवकाश था,और तुम आई ना, सो फिर आइना तोड़ ड

इतवार था,अवकाश था,और तुम आई ना,
सो फिर आइना तोड़ डाला मैंने।
अब और ऐतबार नहीं इस चेहरे पर,
सुकून तो तीरे तस्वीर में है बस।
सो निहारता रहा सहर तक ,
रहा बैठा अकेला उसी बेंच पर,
जिसपे दो चार शाम हुई थी हमारी।
नीर नही अश्क से भरा था तालाब आज ,
फिर उसी तालाब में सारी यादें विसर्जन कर आया।।

- गीतेय...

©rritesh209
  #Benchawaits