क्यूँ नहीं बरसते बंज़र पड़ती धरती में उन तरसती आँखों का सोचो जो एक ही आस लिए बैठे हैं के तुम बरसो तो ये भी महकें धरती की तरह सोंधी-सोंधी... सोंधी-सोंधी...